BA Semester-2 - History - History of Medival India 1206-1757 AD - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-2 - इतिहास - मध्यकालीन भारत का इतिहास 1206-1757 ई. - सरल प्रश्नोत्तर समूह
लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 - इतिहास - मध्यकालीन भारत का इतिहास 1206-1757 ई.

बीए सेमेस्टर-2 - इतिहास - मध्यकालीन भारत का इतिहास 1206-1757 ई.

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2720
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बीए सेमेस्टर-2 - इतिहास - मध्यकालीन भारत का इतिहास 1206-1757 ई.

अध्याय - 8
शिवाजी के अधीन मराठाओं के उदय का संक्षिप्त परिचय

शिवाजी के पहले मराठे (महाराष्ट्र दक्षिणी पठार की पश्चिमी सीमा) के रहने वाले वे लोग थे, जो कृषि कार्यों में लगे रहते थे और अपनी जीविका चलाते रहते थे। कुछ उच्च परिवारों को लोग मुसलमानों के यहाँ नौकरी करते थे और सेना में छोटे-छोटे पद पाए हुए थे। इनका आर्थिक और सामाजिक जीवन एक जैसा ही था। ये परिश्रमी थे और सादा जीवन व्यतीत करते थे। ये स्वावलंबी, उत्साही वीर तथा स्वाभिमानी थे इनकी भाषा मराठी तथा धर्म हिन्दू था। 17वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य के विघटन की प्रक्रिया प्रारम्भ होने के साथ ही देश में स्वतंत्र राज्यों की स्थापना का जो सिलसिला आरम्भ हुआ उनमें राजनीतिक दृष्टि से सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य मराठों का था। आरम्भिक इतिहासकारों के अनुसार मराठों के उत्कर्ष में उस क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थिति, औरंगजेब की हिन्दी विरोधी नीतियों और उनके परिणामस्वरूप हिन्दू जागरण, मराठा सन्तकवियों का धार्मिक आन्दोलन आदि महत्त्वपूर्ण कारक थे। ग्रान्ट डफ के अनुसार सत्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मराठों का उदय आकस्मिक अग्निकांड की भाँति हुआ। मराठों के मूल प्रदेश पश्चिमी महाराष्ट्र और कोंकण प्रायः मुस्लिम राजनीतिक प्रभाव से मुक्त थे। इस क्षेत्र पर बीजापुर तथा गोलकुण्डा के बहमनी सुल्तानों का अधिकार नाममात्र का था। शिवाजी के उदय से पूर्व भी मराठों को प्रशासनिक और सैनिक क्षेत्रों में विशेष स्थान प्राप्त था। बहुत से मराठा सिपहसालार तथा मनसबदार के रूप में बहमनी राज्य और उसके उत्तराधिकारी बीजापुर और अहमदनगर राज्य में नौकरी करते थे। अहमदनगर के मलिक अम्बर ने मराठों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित किए तथा युद्ध और प्रशासन दोनों में उनकी सर्वोत्तम प्रतिभा और सहयोग का उपयोग किया। भारतीय इतिहास की यह लोकप्रिय कहावत है कि “अनुपजाऊ और दुर्गम प्रदेश, वीर और लड़ाकू योद्धाओं की जननी है।" यह कथन मराठों पर चरितार्थ होता है। सर जदुनाथ सरकार का कथन है कि “प्रकृति ने मराठों में आत्मनिर्भरता, साहस, दृढ़ता, अत्यन्त सादगी और सौम्यता, सामाजिक समानता और इसके परिणामस्वरूप मनुष्य के रूप में मानव की गरिमा पर गर्व करने के गुणों का विकास किया।" मराठों में भिन्न नृजातीय तत्त्व थे जो आर्य, द्रविड़, विदेशी तथा जनजातीय तत्त्वों के परिचायक थे। रानाडे ने "महाराष्ट्र में धार्मिक और राजनीतिक उथल-पुथल के बीच घनिष्ठ संबंध पर अधिक बल दिया है। "

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • 20 अप्रैल 1627 ई० को पूना के निकट शिवनेर के दुर्ग में शिवाजी का जन्म हुआ। इनके पिता का नाम शाहजी भोसले तथा माता का नाम जीजाबाई था।
  • शिवाजी के व्यक्तित्व पर सर्वाधिक प्रभाव उनकी माता जीजाबाई तथा संरक्षक एवं शिक्षक दादा कोंणदेव का पड़ा। इनके गुरु का नाम समर्थ रामदास था।
  • 'दसबोध' नामक पुस्तक के लेखक और शिवाजी के पितृ तुल्य गुरु रामदास समर्थ (1608 से 1682 ) में कर्मदर्शन का उपदेश दिया और शिवाजी के पुत्र शम्भाजी को मराठों को संगठित करने और महाराष्ट्र धर्म का प्रचार करने के लिए प्रोत्साहित किया।
  • आरम्भ में शिवाजी का उद्देश्य एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना करना था।
  • शिवाजी ने हिन्दू पद पादशाही' अंगीकार किया और ब्राह्मणों की रक्षा का व्रत लिया और 'हिन्दुत्व - धर्मोद्धारक' की उपाधि धारण की।
  • शिवाजी में हिन्दू धर्म की रक्षा की भावना थी। परन्तु उनका मुख्य उद्देश्य राजनीतिक था। उनका मूल उद्देश्य मराठों की बिखरी हुई शक्ति को एकत्रित करके महाराष्ट्र (दक्षिण भारत ) में एक स्वतन्त्र राज्य की स्थापना करना था।
  • शिवाजी सर्वप्रथम 1643 ई० में बीजापुर के सिंहगढ़ के किले पर आधिपत्व किया। तत्पश्चात् 1646 ई0 में उन्होंने तोरण पर अधिकार कर लिया।
  • 1656 ई0 तक शिवाजी ने चाकन, पुरन्दर, बारामती, सूपा, तिकोना, लोहगढ़ आदि विभिन्न किलों पर अधिकार कर लिया।
  • 1656 ई0 में शिवाजी की महत्त्वपूर्ण विजय जावली थी। जावली एक मराठा सरदार चन्द्रराव मोरे के अधिकार में था। अप्रैल 1656 ई० में उसने रायगढ़ के किले पर कब्जा कर लिया।
  • 1657 ई0 में शिवाजी का पहली बार मुकाबला मुगलों से हुआ, जब वह बीजापुर की तरफ से मुगलों से लड़ा। इसी समय शिवाजी ने जुन्नार को लूटा। कुछ समय पश्चात् मुगलों के उत्तराधिकार युद्ध का लाभ उठाकर उसने कोंकण पर भी विजय प्राप्त की।
  • शिवाजी की इस विस्तारवादी नीति से बीजापुर शासक सशंकित हो गया। उसने शिवाजी की शक्ति को दबाने तथा उसे कैद करने के लिए 1659 ई0 में अपने योग्य सरदार अफजल खाँ के नेतृत्व में एक सैनिक टुकड़ी भेजी।
  • ब्राह्मण दूत कृष्णजी भाष्कर ने अफजल खाँ का वास्तविक उद्देश्य शिवाजी को बता दिया।
  • शिवाजी और अफजल खाँ की मुलाकात प्रतापगढ़ के दक्षिण में स्थित पार नामक स्थान पर हुई, जहाँ पर शिवाजी ने 2 नवम्बर 1659 ई0 में उसकी हत्या कर दी।
  • शिवाजी के शासन का वास्तविक संचालन अष्ट प्रधान नामक आठ मंत्री करते थे जिसका कार्य राजा को परामर्श देना मात्र था। इसे किसी भी अर्थ में मंत्रिमण्डल नहीं कहा जा सकता।
  • पेशवा अथवा मुख्य प्रधान राजा का प्रधानमंत्री होता था। इसका कार्य सम्पूर्ण राज्य के शासन की देखभाल करना था। राजा की अनुपस्थिति में उसके कार्यों की देखभाल भी करता था। सरकारी पत्रों तथा दस्तावेजों पर राजा के नीचे अपनी मुँहर लगाता था।
  • अमात्य या मजूमदार वित्त और राजस्व मंत्री होता था। .
  • वाकिया नवीस या मंत्री राजा के दैनिक कार्यों तथा दरबार की प्रतिदिन की कार्यवाहियों में भाग लेता था।
  • सुरुनवीस अथवा सचिव राजकीय पत्र व्यवहार का कार्य तथा परगने का हिसाब रखता था। दवीर या सुमन्त विदेश मंत्री था।
  • सेनापति या सर-ए-नौबत सेना की भर्ती संगठन रसद आदि का प्रबंध करता था।
  • पण्डितराव - विद्वानों एवं धार्मिक कार्यों के लिए दिए जाने वाले अनुदानों का दायित्व था। न्यायाधीश — यह मुख्य न्यायाधीश होता था ( राजा के बाद)।
  • अष्ट प्रधान में पंडितराव और न्ययाधीश के अतिरिक्त सभी मंत्रियों को अपने असैनिक कर्त्तव्यों के अतिरिक्त सैनिक कमान संभालनी पड़ती थी।
  • शम्भाजी, राजाराम को गद्दी से उतारकर 20 जुलाई 1680 को सिंहासनारूढ़ हुआ। अपनी मृत्यु के अवसर पर शिवाजी ने उसे पन्हाला के किले में कैद कर रखा था।
  • 1681 में औरंगजेब के विद्रोही पुत्र अकबर को उसने शरण दिया।
  • 11 मार्च 1689 ई0 में औरंगजेब से शम्भाजी की हत्या करवा दी। उसकी राजधानी रायगढ़ पर कब्जा कर लिया तथा उसके पुत्र शाहू और पत्नी येसूबाई को गिरफ्तार कर 'रायगढ़ के किले, में कैद करवा दिया।
  • शम्भाजी की मृत्यु के बाद उसके सौतेले भाई राजाराम को मराठा मंत्रिपरिषद् ने राजा घोषित किया। फरवरी 1689 ई0 में रायगढ़ में इसका राज्याभिषेक हुआ।
  • राजाराम ने मराठा सरदारों को जागीरें प्रदान की जिसके परिणामस्वरूप मराठा सरदारों की स्वायत्त सत्ता की और अन्ततः मराठा मण्डल का राज्यसंघ का उदय हुआ।
  • 1700 ई० में अपनी मृत्यु तक राजाराम ने स्वतंत्रता संघर्ष जारी रखा।
  • राजाराम की मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी ताराबाई ने अपने चार वर्षीय पुत्र शिवाजी द्वितीय के नाम से गद्दी पर बैठाया और मुगलों से स्वतंत्रता संघर्ष जारी रखा।
  • ताराबाई ने रायगढ़, सतारा तथा सिंहगढ़ आदि किलों को मुगलों से जीत लिया।
  • औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसके पुत्र आजम शाह ने 8 मई 1707 ई0 को शाहू को कैद से मुक्त कर दिया।
  • 12 अक्टूबर 1707 ई० को शाहू तथा ताराबाई के मध्य 'खेड़ा का युद्ध हुआ। जिसमें शाहू, बालाजी विश्वनाथ की मदद से विजयी हुआ।
  • 1660 ई0 में मुगल शासक औरंगजेब ने शाइस्ता खाँ को शिवाजी को समाप्त करने के लिए दक्षिण का गवर्नर नियुक्त किया। शाइस्ता खाँ ने बीजापुर राज्य से मिलकर शिवाजी को समाप्त करने की योजना बनाई।
  • 15 अप्रैल 1663 ई0 में शिवाजी रात्रि में चुपके से पूना में प्रवेश कर शाइस्ता खाँ के महल पर आक्रमण कर दिया। शाइस्ता खाँ इस अचानक आक्रमण से घबराकर भाग खड़ा हुआ। इस आक्रमण के कारण मुगल सेना को काफी क्षति पहुँची तथा शिवाजी की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई
  • 1664 ई0 में शिवाजी ने सूरत पर धावा बोल दिया। यह मुगलों का एक महत्त्वपूर्ण किला था। उसने चार दिन तक नगर को लूटा।

औरंगजेब ने शाइस्ता खाँ के असफल होने पर शिवाजी को कुचलने के लिए आमेर के मिर्जा राजा जयसिंह को दक्षिण भेजा। वह बड़ा चतुर कूटनीतिज्ञ था। उसने समझ लिया कि बीजापुर को जीतने के लिए शिवाजी से मैत्री करना आवश्यक है। अतः पुरन्दर के किले पर मुगलों की विजय और रायगढ़ की घेराबन्दी के बावजूद उसने शिवाजी से पुरन्दर की सन्धि की। जून 1665 ई0 पुरन्दर सन्धि के अनुसार-
1. शिवाजी को चार लाख दूज वार्षिक आय वाले तेइस किले मुगलों को सौंपने पड़े, उसके पास कोई सिर्फ बारह किले थे।
2. मुगलों ने शिवाजी के पुत्र शम्भाजी को पंच हजारी तथा उचित जागीर देना स्वीकार किया।
3. शिवजी ने बीजापुर के विरुद्ध मुगलों को सैनिक सहायता देने का वायदा किया।
औरंगजेब ने इस सन्धि को स्वीकार कर शिवाजी के लिए फरमान एवं खिलअत भेंट किया।

  • 1666 ई0 में शिवाजी जयसिंह के आश्वासन पर औरंगजेब से मिलने आगरा आए, पर उचित सम्मान न मिलने पर दरबार से उठकर चले गए औरंगजेब ने उन्हें कैद कर जयपुर भवन (आगरा) में रखा। परन्तु चतुराई से शिवाजी आगरे के कैद से फरार हो गए।
  • 14 जून 1674 ई0 को शिवजी ने काशी के प्रसिद्ध विद्वान् गंगाभट्ट से अपना राज्याभिषेक रायगढ़ में करवाया तथा छत्रपति की उपाधि धारण की।
  • शिवाजी का संघर्ष जंजीरा टापू के अधिपति अबीसीनियाई सीरियों से भी हुआ। सीरियों पर अधिकार करने के लिए उसने नौसेना का भी निर्माण किया। परन्तु वह पुर्तगालियों से गोआ तथा सीरियों से चौल और जंजीरा को न छीन सके।
  • अपने अंतिम समय में शिवाजी ने एक बार फिर बीजापुर को मुगलों के विरुद्ध सहायता दी। 12 अप्रैल, 1680 में उसकी मृत्यु हो गयी।
  • जदुनाथ सरकार ने कहा कि "मैं शिवाजी को हिन्दू प्रजाति का अंतिम रचनात्मक प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति और राष्ट्रनिर्माता मानता हूँ।"

...पीछे | आगे....

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. अध्याय -1 तुर्क
  2. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  3. उत्तरमाला
  4. अध्याय - 2 खिलजी
  5. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  6. उत्तरमाला
  7. अध्याय - 3 तुगलक वंश
  8. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  9. उत्तरमाला
  10. अध्याय - 4 लोदी वंश
  11. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  12. उत्तरमाला
  13. अध्याय - 5 मुगल : बाबर, हूमायूँ, प्रशासन एवं भू-राजस्व व्यवस्था विशेष सन्दर्भ में शेरशाह का अन्तर्मन
  14. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  15. उत्तरमाला
  16. अध्याय - 6 अकबर से शाहजहाँ : मनसबदारी, राजपूत एवं महाराणा प्रताप के सम्बन्ध व धार्मिक नीति
  17. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  18. उत्तरमाला
  19. अध्याय - 7 औरंगजेब
  20. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  21. उत्तरमाला
  22. अध्याय - 8 शिवाजी के अधीन मराठाओं के उदय का संक्षिप्त परिचय
  23. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  24. उत्तरमाला
  25. अध्याय - 9 मुगलकाल में वास्तु एवं चित्रकला का विकास
  26. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  27. उत्तरमाला
  28. अध्याय - 10 भारत में सूफीवाद का विकास, भक्ति आन्दोलन एवं उत्तर भारत में सुदृढ़ीकरण
  29. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  30. उत्तरमाला

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book